दोस्तों हमारा भारत देश धर्म, संस्कृति और वास्तुकला का देश है। कई मंदिर और ऐतिहासिक स्मारक आज भी हमारे गौरवशाली इतिहास के साक्षी हैं। इनमें से एक मंदिर अनोखा और विशेष स्थान रखता है – कोर्नाक सूर्य मंदिर। भगवान सूर्य को समर्पित यह मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि विज्ञान और वास्तुकला की दृष्टि से भी अद्भुत है।
इस लेख में हम कोर्नाक सूर्य मंदिर के इतिहास, इसकी स्थापना की कहानी, वास्तुकला, रहस्य और आधुनिक समय में इसके महत्व को सरल भाषा में समझने की कोशिश करेंगे।
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कोर्नाक सूर्य मंदिर कहाँ स्थित है?
कोर्नाक सूर्य मंदिर भारत के पूर्वी भाग में ओडिशा राज्य के पुरी जिले में बंगाल के तट पर स्थित है। भुवनेश्वर से लगभग 65 किमी और पुरी से 35 किमी दूर स्थित यह मंदिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
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मंदिर का इतिहास – इसे किसने और क्यों बनवाया?
कोर्नाक का भव्य मंदिर 13वीं शताब्दी के अंत में, लगभग 1250 ई. में, पूर्वी गंगा राजवंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया था। उन्होंने इस मंदिर को अपनी सैन्य जीत और समृद्ध शासनकाल के प्रतीक के रूप में बनवाया था। वे सूर्य देव के भक्त थे और यह मंदिर उनकी आध्यात्मिक आस्था का भी प्रतिनिधित्व करता है।
“कोर्नाक” नाम का अर्थ क्या है?
- “कोर्नाक” नाम दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है
“कोण” का मतलब है कोणीय स्थान
“अर्क” का मतलब है सूर्य
अर्थात “सूर्य देव का स्थान”। -
(कोर्नाक) यह नाम मंदिर के धार्मिक महत्व और भौगोलिक स्थिति का संकेत देता है।
मंदिर का डिज़ाइन – रथ के आकार में भव्यता
मंदिर को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यह सूर्य देव के रथ जैसा दिखता है। मंदिर एक विशाल रथ के रूप में बनाया गया है, जिसमें निम्नलिखित तत्व पाए जाते हैं।
» 24 पहिए – ये 24 पहिए वर्ष के 12 महीनों और दिन के 24 घंटों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
» 7 घोड़े – सूर्य के रथ को खींचने वाले 7 घोड़े, जो सप्ताह के सात दिनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
» प्रत्येक पहिये पर विस्तृत नक्काशी है, जो समय और जीवन के चक्र को दर्शाती है।
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मूर्तिकला और शिल्पकला
कोर्नक सूर्य मंदिर की मूर्तिकला इतनी प्रसिद्ध है कि इसे “वास्तुकला का आश्चर्य” कहा जाता है। क्योंकि इसकी दीवारों पर हैं:
» दिव्य मूर्तियाँ
» पशु और पक्षीयों आकृतियाँ
» नृत्य करती हुई महिला शरीर (नर्तकी मूर्ति)
» कामुक मूर्तियाँ – ये मूर्तियाँ खजुराहो मंदिरों की शैली में बनाई गई हैं, जो मानव जीवन के हर पहलू को दर्शाती हैं।
» ये मूर्तियाँ केवल सजावट के लिए नहीं हैं, बल्कि जीवन, संस्कृति और दर्शन के तत्वों को दर्शाने का एक प्रयास हैं।
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धार्मिक और वैज्ञानिक नजरिए से महत्वपूर्ण
कोरनाक मंदिर ना केवल धार्मिक था, बल्कि उस समय के वैज्ञानिक ज्ञान का एक बेहतरीन उदाहरण भी है:
» सुबह की पहली सूर्य की किरणे सीधा मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है
मंदिर इस तरह बनाया गया है कि सुबह की सूर्य की किरणें सीधे देवी की मूर्ति पर पड़ती हैं।
» ध्वनि और प्रकाश को समझना
मंदिर को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि ध्वनि और प्रकाश आसानी से परावर्तित हो जाते हैं।
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मंदिर का विनाश – यह खंडहर कैसे बन गया?
यह मंदिर आज खंडहर के रूप में दिखाई देता है। कई इतिहासकार कहते हैं कि:
» मुगल शासन के दौरान इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया गया था।
» समय के साथ, इसके कई हिस्से ढह गए।
» मुख्य गर्भगृह (वह स्थान जहाँ मूर्ति स्थित है) अब बंद है।
» प्राकृतिक आपदाओं और रखरखाव की कमी के कारण इसकी स्थिति खराब हो गई।
» लेकिन आज भी यह एक अनूठी वास्तुकला के रूप में खड़ा है।
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रहस्यमय चीजे – क्या हैं कोरानक मंदिर के रहस्य?
1. चुंबकीय पत्थर:
कहा जाता है कि मंदिर के शीर्ष पर एक चुंबकीय पत्थर था जिसकी बजह से नावें अपनी दिशा खो देती थीं।
2. मंदिर की इमारत इस तरह से बनाई गई है कि पत्थरों के बीच लोहे की पिनों से कनेक्शन है।
3.मूल मूर्ति गायब है:
वर्तमान मे , भगवान सूर्य की मूल मूर्ति मंदिर के अंदर नहीं है। यह कहाँ गई, इसे क्यों ले जाया गया अभी तक किसी को नहीं पता है।
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विश्व में इसकी मान्यता – यूनेस्को द्वारा मान्यता
कॉर्नाक सूर्य मंदिर को 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। इससे इसकी वैश्विक मान्यता और बढ़ गई है।
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आज के समय में महत्व – त्यौहार और पर्यटन
कॉर्नाक सूर्य मंदिर का महत्व अपरिवर्तित है। हर साल हजारों तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ आते हैं। विशेष रूप से:
1. कॉर्नाक नृत्य महोत्सव:
हर साल दिसंबर के महीने में आयोजित होने वाला यह नृत्य महोत्सव भारत के विभिन्न शास्त्रीय नृत्यों को प्रदर्शित करता है।
2. चंद्रभागा मेला: मंदिर के पास चंद्रभागा समुद्र तट पर आयोजित मेले में हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं और पवित्र स्नान करते हैं।
कोर्नाक सूर्य मंदिर भारत की शानदार संस्कृति और इंजीनियरिंग का प्रतीक है। इसकी मूर्तिकला, इतिहास और महत्व हमें “गर्वित” महेसुस कराते हैं। आज की पीढ़ी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम न केवल अपने ऐतिहासिक स्मारकों को जानें, बल्कि उसकी रक्षा भी करें।
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