- चंद्रशेखर आजाद के बारे मे
स्वतंत्रता संग्राम के साहसी और प्रेरणादायक योद्धाओ मे लिया जाता है । उनका जीवन न केवल देशभक्ति की मिसाल पेश करता है ,बल्कि उनके संघर्ष और बलिदान ने भारतीय युवाओ को देश के प्रति कर्तव्यों को समजने और निभाने की प्रेरणा दी । और भारतीय स्वाधीनता संग्राम मे उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा ।
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आजाद का प्रारंभिक जीवन और परिवार
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के भाबरा नाम के गाव मे हुवा था , लेकिन मूल रूप से उनका परिवार उत्तर प्रदेश उन्नाव जिले के बदरका नाम के गांव से था । चंद्रशेखर आजाद का असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था । उनके पिताजी ,श्री सीताराम तिवारी ,एक साधारण ब्राह्मण थे ,जो धार्मिक व्यक्ति थे उनके परिवार मे उच्च मान्यताए थी । चंद्रशेखर आजाद का बचपन बहुत ज्यादा संघर्षमय था । उनके पिता चाहते थे की उनका बेटा अच्छे संस्कारों और शिक्षा के साथ बड़ा हो ,लेकिन चंद्रशेखर का मन कभी भी सामान्य जीवन मे नहीं लगता था । वे बचपन से ही साहसी थे और भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए कुछ बड़ा करने की इच्छा रखते थे ।
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पहेली बार स्वतंत्रता संग्राम मे कदम
चंद्रशेखर आजाद का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति समर्पण को दर्शाता है । आजाद जब केवल 15 साल के थे ,तब उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन मे भाग लिया था । 1921 मे, चंद्रशेखर आजाद ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन को समर्थन दिया । और उनका विश्वास था की देश को आजादी केवल अहिंसा और सत्याग्रह से ही मिल सकती है। हालांकि चंद्रशेखर आजाद ने गांधीजी की नीति का पालन करते हुए भी कुछ असहमति महसूस की । उन्हे लगता था कि आजादी के लिए अगर जरूरत पड़े तो कुछ सख्त कदम भी उठाने जाहिए । इसलिए फिर उन्होंने हिंसक आंदोलन मे भाग लेना सुरू किया ।
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आजाद का हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएसन (HSRA) मे सामील होना
चंद्रशेखर आजाद का वास्तविक क्रांतिकारी जीवन तब सुरू हुवा जब उन्हों ने’हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएसन (HSRA) से जुडने का निर्णय लिया । यह संगठन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी संगठन था ,जिसका उदेश्य भारतीय समाज को साम्राज्यवाद से मुक्त करना और समाजवाद की दिशा मे एक मजबूत कदम बढ़ाना था । इसमे भगतसिंह ,राजगुरु ,सुखदेव जैसे युवा क्रांतिकारी भी सामील थे । चंद्रशेखर आजाद ने इस संगठन मे एक नायक के रूप मे अपनी भूमिका निभाई । उनका नेतृत्व और संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण बन गए ।
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काकोरी कांड और अंग्रेजों से संघर्ष
काकोरी कांड (9 अगस्त 1925 ) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड था । इस घटनाने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया काकोरी ,उतरप्रदेश का एक छोटा सा गाव था ,जहा पर कुछ क्रांतिकारियों ने ट्रेन से सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई थी । इस काम के दौरान चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों ने बड़ी चतुराई से ब्रिटिश पुलिस को मात दी थी ।
इस घटना के बाद चंद्रशेखर आजाद की पहचान एक साहसी क्रांतिकारी के रूप मे बन गई । लेकिन ब्रिटिश पुलीस ने कड़ी महेनत से काकोरी कांड मे सामील थोड़े क्रांतिकारी ओ को पकड़ लिया था । लेकिन चंद्रशेखर आजाद हमेशा अपनी चतुराई से बचते रहे ,उन्हे इस कांड के बाद से ब्रिटिश पुलिस की तरफ से ‘आजाद’ नाम से पहचान मिली,क्योंकी वे हमेशा गिरफ्तार होने से बचते थे । इस नाम का एक एतिहासिक महत्व था ,क्योंकी वह हमेशा अपने क्रांतिकारी साथियों के लिए स्वतंत्रता के प्रतीक बने ।
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चंद्रशेखर आजाद का संघर्ष और उनके विचार
आजाद का मानना था की केवल सस्त्रों के बल पर ही ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त नहीं की जा सकती ,लेकिन उन्होंने कभी इस बात का विरोध भी नहीं किया की संघर्ष का एक मजबूत पक्ष सशस्त्र क्रांति भी हो सकती है । उनका मानना ये था की अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष सिर्फ अहिंसक न होकर हिंसक भी हो सकता है । आजाद का यह मानना था की क्रांतिकारी ताकतों को शत्रु की कमजोरियो का फायदा उठाना जाहिए । चंद्रशेखर आजाद का आदर्श ‘सत्यमेव जयते ‘था लेकिन उनके द्वारा उठाए गए कदम आदर्श की छाया मे रहते हुए संघर्षपूर्ण थे ।
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चंद्रशेखर आजाद का बलिदान
चंद्रशेखर आजाद के जीवन का सबसे दर्दनाक और महत्वपूर्ण पल वह था ,जब वे 27 फरवरी 1931 को इलाहबाद (प्रयागराज )के अल्फ्रेंड पार्क मे अंग्रेजों से घेर लिए गए थे। ब्रिटिश पोलिस के साथ मुठभेड़ के दौरान आजाद अंत तक लड़े और अपने शत्रुओ को चुनौती दी । और आखिर मे एक एसा समय आया जब चंद्रशेखर आजाद के पास कोई गोली नहीं बची । उसके बाद भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया और देश के लिए 24 साल की उम्र मे अपनी जान दे दी ।
चंद्रशेखर आजाद का निधन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा मे एक बड़ा धक्का था ,लेकिन उनका बलिदान और साहस हमेशा भारतीय इतिहास मे अंमर रहेगा ।