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तुलसी दास का जीवन परिचय
तुलसी दास एक भारतीय संत, कवि और लेखक थे , जिन्हें अपने जीवनकाल में राम की भक्ति के प्रसार – प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी काव्य रचनाएं रामचरितमानस के रूप विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जो भारतीय साहित्य और संस्कृति में एक मिल का पत्थर मानी जाती है। तुलसी दास का जीवन और योगदान आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। दोस्तो आज के इस लेख में हम तुलसी दास के जीवन , उनके कार्यों और उनकी महानता के बारे में विस्तार से जानेंगे।
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प्रारंभिक जीवन
तुलसी दास का जन्म 1535 के आसपास उतर प्रदेश के राजापुर नाम के गांव में हुआ था। उनका असली नाम रैंबोलिन था। उनकी माता का नाम हेविन और पिता का नाम मुर्गनायक था। उनक जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, लेकिन उनके परिवार की सामाजिक स्थिति बहुत ही साधारण थी। तुलसी दास का जीवन शुरू से ही संघर्ष से भरा हुआ था।
तुलसी दास के जीवन के बारे में कई कहानियों प्रचलित है, जिन से एक प्रमुख कहानी यह है कि जब तुलसी दास का जन्म हुआ , तो उनके माता पिता ने उन्हें एक गंभीर अभिशाप के रूप में त्याग दिया। कुछ समय बाद वह बड़े हुए तो एक साधु का जीवन जीने के लिए आश्रम में चले गए। फिर यही से उनकी भक्ति और साधना की यात्रा शुरू हुई और उन्होंने भगवान राम की आराधना शुरू कर दी।
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तुलसी दास की शिक्षा और अभ्यास
तुलसी दास का जीवन अत्यंत आध्यात्मिक था। उन्होंने अपनी शिक्षा की शुरुआत संस्कृत साहित्य और वेदों से की। वह बहुत ही बुद्धिमान और तेज दिमाग वाले व्यक्ति थे। रामायण के गहन अध्ययन के बाद उन्हें रामकाव्य के महत्व का एहसास हुआ और फिर उन्होंने इसे भारतीय समाज में फैलाने की फैसला लिया।
तुलसी दास के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड तब आया जब उन्हें श्री राम के प्रति अत्यधिक सम्मान और भक्ति प्राप्त हुई। भगवान राम की भक्ति में समर्पित होकर उन्होंने रामायण की रचना करने का निर्णय लिया। उनकी भक्ति ,साधना और जीवन संघर्ष ने उन्हें एक महान कवि और संत बनाया।
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रामचरितमानस की रचना
तुलसी दास का सबसे प्रसिद्द और महत्वपूर्ण योगदान “रामचरितमानस” है। रामचरितमानस अवधि संस्कृत में लिखी गई वाल्मिकी की रामायण का काव्यात्मक रूपांतरण है। इसे 16वीं शताब्दी के मध्य में तुलसी दास ने लिखा था। रामचरितमानस हिन्दी साहित्य का एक अनोखा ग्रंथ माना जाता है, जिसमे भगवान श्री राम के जीवन की प्रमुख घटनाओं का विस्तार से उल्लेख है।
रामचरितमानस की रचना का उद्देश्य लोगों में राम के आदर्शो को स्थापित करना और उन्हें जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करना था। तुलसी दास ने इस कविता में भगवान राम की पूजा के महत्व पर जोर दिया और भगवान राम के आदर्शो को जीवन का मूल सिद्धांत बताया। इस ग्रंथ के माध्यम से तुलसी दास जी समाज में धार्मिक एकता और नैतिकता की शिक्षा देना चाहते थे।
रामचरितमानस में भगवान राम की कहानी को विस्तार से जैसे कि अयोध्याकांड, आरण्यकांड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकांड और उत्तरकांड के रूप में प्रस्तुत किया गया है। रामचरितमानस का एक मुख्य आकर्षण यह था कि इसे अवधी भाषा में इस तरह लिखा गया था कि आम लोग भी इसे समझ सके, ताकि यह सभी वर्गों के लोगों में पहुंच सके। इस कविता के माध्यम से तुलसीदास ने न केवल धार्मिक विचारों और संस्कृतियों का संग्रह किया, बल्कि भारतीय लोगों के बीच भगवान राम की भक्ति का प्रसार भी किया।
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तुलसी दास की अन्य रचनाएं
तुलसी दास जी ने न केवल रामचरितमानस की रचना की बल्कि कई अन्य काव्य कृतियों की भी रचना की । उनके प्रमुख काव्य कृतियों में “हनुमान चालीसा ” , “दोहा” और “कवितावली” भी शामिल है। इनमें हनुमान चालीसा विशेष रूप से लोकप्रिय है। हनुमान चालीसा भगवान हनुमान की भक्ति और उनके अनोखे गुणों का वर्णन करती है और आज भी पूरे भारत में बड़ी भक्ति भाव के साथ पढ़ी जाती है।
आज भी तुलसी दास की रचनाएं समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ती है और समाज के सभी क्षेत्रों के लोगों द्वारा भक्तिभाव से पढ़ी जाती है। तुलसी दास की रचनाएं भगवान राम, हनुमान और अन्य देवी – देवताओं के प्रति उनकी भक्ति और सम्मान को स्पष्ट रूप से व्यक्त करती है।
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तुलसी दास का समाज पर प्रभाव
तुलसी दास का समाज पर गहरा प्रभाव था। उन्होंने भारतीय समाज को भक्ति, आदर्श और नैतिकता की ओर नैतिकता की ओर प्रेरित किया । रामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसे ग्रंथों के माध्यम से उन्होंने आम लोगों को धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनके द्वारा लिखे गए साहित्य और ग्रंथों ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद की और लोगों को सच्चे धर्म के बारे में जागरूक किया।
उनके कार्यों का सामाजिक , सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। उनके योगदान के कारण ही रामायण के आदर्श और भगवान राम की भक्ति आज भी भारतीय समाज में प्रचलित है।
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तुलसी दास का अंतिम समय
तुलसी दास के अंतिम दिन बहुत ही सरल और शांतिपूर्ण थे। वह अपने जीवन भर अच्छे कार्यों और भगवान राम की भक्ति में लगे रहे। और भाई उनका अंतिम समय आ ही गया और 1623 ई. में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके कार्य और विचार समाज में जीवित रहे। आज भी उनकी कविताएं और शिक्षाएं भारतीय समाज का मार्गदर्शन करती है।