भारत के उतर प्रदेश राज्य मे वृंदावन के मद्य मे स्थित बाँके बिहारी जी मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित सबसे प्रसिद्द और पूजनीय मंदिरों में से एक है। यह मंदिर हर साल दुनिया भर से लाखों भक्तों को अपनी और आकर्षित करता है, जो अपनी प्राथना करने, सुंदर अनुष्ठानों को देखने और इस स्थान की गहरी आध्यात्मिक अनुभूति का अनुभव करने आते है। बांके बिहारी जी मंदिर का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है, जो दिव्य कहानियों ,किंवदंतियों और रहस्यमय रहस्यों से भरा हुआ है जो पीढ़ियों से चले आ रहे है। तो आज के इस लेख में हम बांके बिहारी जी मंदिर के इतिहास, रहस्यों और महत्व के बारे में गहराई से जानेंगे और यह पता लगाएंगे कि लाखों भक्तों के लिए क्यों है इतना खास यह स्थान।
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बांके बिहारी जी मंदिर की उत्पत्ति
बांके बिहारी जी मंदिर की स्थापना 16 शताब्दी के अंत में वृंदावन में की गई थी, जिसे भगवान कृष्ण की बाल भूमि के रूप में भी जाना जाता है। प्रसिद्ध स्वामी हरिदास ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था, जो कि वे भगवान कृष्ण के प्रमुख भक्त और संगीत के उस्ताद थे,जिन्हें कृष्ण भगवान को समर्पित भक्ति गीत बनाने का श्रेय दिया जाता है। स्वामी हरिदास एक महान संत थे जो कि सम्राट अकबर के समय में रहते थे। ऐसा माना जाता है कि स्वामी हरिदास ने अपना ज्यादातर जीवन भगवान कृष्ण की स्तुति में गाने में और रचना करने में बिताया ,भगवान कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति और गहन प्रेम पौराणिक था, और ऐसा माना जाता है कि उनकी भक्ति के जवाब में कृष्ण भगवान ने स्वयं एक देव के रूप में प्रगट हुए थे। बांके बिहारी के नाम के पीछे की कहानी’ बांके बिहारी नाम का अर्थ है कमर से झुका हुआ व्यक्ति , जो मंदिर के अंदर रखी मूर्ति में भगवान कृष्ण की मुद्रा को दर्शाता है। बांके बिहारी जी मंदिर में, कृष्ण के रूप को थोड़ा झुका झुका हुआ दिखाया गया है, एक मुद्रा जिसे बहुत ही सुंदर और आकर्षक माना जाता है। कृष्ण की यह अनोखी मुद्रा वृंदावन के प्रेम ,भक्ति और आनंद का प्रतीक है, जो भगवान कृष्ण की दिव्य बाल लीला ओ का केंद्र है।
बांके बिहारी जी मंदिर के अंदर भगवान कृष्ण अपने बाल रूप में विराजमान है,और उनका सुंदर, मनमोहक रूप किसी को भी मोहित कर लेता है। भक्तों का मानना है कि कृष्ण भगवान इस झुकी हुई मुद्रा में रहते है क्योंकि वे अपने भक्तों की भक्ति को प्यार से स्वीकार करते है।
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बांके बिहारी जी की मूर्ति और इसकी रहस्यमय शक्ति
बांके बिहारी जी की मूर्ति एक विशेष काले पत्थर से बनी है, जिसके बारे में लोगों का मानना है कि इसमें रहस्यमय शक्तियां है। इस मंदिर की मूर्ति किसी अन्य पारंपरिक मूर्ति की तरह नहीं है, ऐसा कहा जाता है कि स्वामी हरिदास को भगवान कृष्ण के दिव्य दर्शन हुए थे, और यह मूर्ति किसी मानव हाथों से नहीं बनाई गई थी, बल्कि यह मूर्ति दैवीय हस्तक्षेप से प्रगट हुई थी।
दंतकथा ओ के अनुसार बांके बिहारी जी की मूर्ति वृंदावन के पास के एक पवित्र वन क्षेत्र निधिवन में खोजी गई थी। यह जंगल भगवान कृष्ण की दिव्य लीलाओं से जुड़ा हुआ है, और ऐसा माना जाता है कि स्वामी हरिदास द्वारा इस मूर्ति को खोजे जाने से पहले मूर्ति सदियों तक जंगल में छिपी रही थी। मूर्ति को भक्तों के सामने खड़ी स्थिति में रखा गया है, और मूर्ति की आंखे ज्यादातर समय आकर्षक तरीके से बंद रहती है। आंखों का बंद होना एक रहस्यमय विशेषता मानी जाती है, क्योंकि दैनिक अनुष्ठानों के दौरान, आंखे अपने आप खुलती और बंद होती है, जैसे कि भगवान कृष्ण स्वयं अपने भक्तों को दर्शन दे रहे हो।
लोगों मानना है कि बांके बिहारी जी मंदिर में देवता की शक्ति इतनी दिव्य है कि प्रेम और भक्ति से अभिभूत हुए बिना मूर्ति को सीधा देखना असंभव है। कुछ लोग तो यहां तक कहते है कि मंदिर भगवान अपने भक्तों पर अपनी कृपा इस तरह से दिखाते है कि भक्तों को गहरी आंतरिक शांति और ईश्वर के साथ अपने जुड़ाव का अनुभव होता है।
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बांके बिहारी जी मंदिर की वास्तुकला
बांके बिहारी जी मंदिर भारत के अन्य कुछ मंदिरों जितना भव्य नहीं है, लेकिन सादगी और दिव्यता का प्रतीक है। यह मंदिर वृंदावन में छटीकरा रोड पर स्थित है, छोटी गलियों के बीच जहां पर अक्सर भक्तों और तीर्थयात्रियों की भीड़ लगी रहती है। सुंदर और जटिल मंदिर का प्रवेश द्वार है, और वातावरण हमेशा भक्ति ,मंत्रों और भजन कीर्तन से भरा रहता है।
इस मंदिर की संरचना पारंपरिक उतर भारतीय मंदिर वास्तुकला और उस समय की कलात्मक संवेदना ओ का एक सुंदर मिश्रण है। मंदिर में एक बड़ा गर्भगृह है जहां बांके बिहारी जी की मूर्ति रखी गई है, साथ ही साथ यहां पर अन्य देवताओं को समर्पित कुछ अन्य छोटे मंदिर भी है।
मंदिर के अंदर, आपको कुछ छोटे कमरों से घिरा एक सुव्यवस्थि प्रांगण भी मिलेगा जहां पर भक्त मंत्रोच्चार और प्राथना करने के लिए इक्कट्ठे होते है। मंदिर सुंदर भित्ति चित्रों और सजावट से सुसज्जित है जो भगवान कृष्ण के जीवन के दृश्यों और वृंदावन में उनके बचपन की महाकाव्य कहानियों को दर्शाते है।
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बांके बिहारी जी मंदिर में अनोखी रस्में और पूजा
बांके बिहारी जी मंदिर के सबसे दिलचस्प पहलुओं में से एक पूजा की अनूठी शैली। अधिकांश मंदिरों के विपरीत जहां पुजारी मंत्रों का जाप करते हे या फिर विस्तृत अनुष्ठान करते है, बांके बिहारी जी मंदिर में पूजा सरल और आसान है लेकिन बहुत ज्यादा शक्तिशाली है।
बाँके बिहारी जी मंदिर मे , भक्तजन कृष्ण भगवान की स्तुति मे भक्ति गीत गाते है और बार बार उनका नाम जपते है । बाँके बिहारी जी मंदिर मे एक और विशेष परंपरा है जिस परंपरा के कारण भक्तों को भगवान के सीधे दर्शन करने की अनुमति नहीं है, इसकी बजाय , उन्हे भगवान कृष्ण को एक कोण से देखने के लिए निर्देशित किया जाता है, एक पर्दा जो के भगवान के रूप के हिस्से को छुपाता है, और जब पर्दा खिचा जाता है, और भगवान भक्तों की आँखों के सामने प्रगट होते है।
एसा माना जाता है की यह प्रथा भगवान कृष्ण और उनके भक्तों बीच एक रहस्यमयी खेल का प्रतिनिधित्व करती है , जो इस बात पर जोर देती है की सच्ची भक्ति प्रेम और विश्वास से ही हो सकती है , न की केवल भौतिक नजरिए से। भगवान कृष्ण के सामने लगाया गया पर्दा बिलकुल सही समय पर हटाया जाता है, मानो जैसे की भगवान कृष्ण खुद ही अपने भक्तों के सामने प्रगट हो रहे हो , जो की वास्तव मे उनकी दिव्य उपस्थिति के योग्य है।
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बांके बिहारी जी मंदिर के त्योहार
बांके बिहारी जी मंदिर विशेष रूप से होली और जन्माष्टमी जैसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों के दौरान बहुत ही आध्यात्मिक महत्व का केंद्र है। इन त्योहारों के दौरान ,मंदिर उल्लासपूर्ण उत्सवों का स्थान बन जाता है, जिसमे हजारों भक्त अनुष्ठानों में भाग लेने , नृत्य करने और भगवान कृष्ण की स्तुति में भजन गाने के लिए आते है। जन्माष्टमी के अवसर मंदिर को बहुत ही खूबसूरती से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण के जन्म का जश्न मनाने के लिए विशेष प्राथना और अनुष्ठान किए जाते है। पूरा वृंदावन शहर उत्साह और खुशी के माहौल से भरा होता है।