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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
स्वामी विवेकानंदजी एक समाज सुधारक ,संत और योगी थे।जिन्होंने अपने जीवनकाल के दौरान भारतीय संस्कृति और वेदांत दर्शन को पुनर्जीवित किया। स्वामी विवेकानंद का जीवन प्रेरणा और साहस का प्रतीक है। और उन्होंने अपने विचारों और कार्यों से लाखों लोगों को प्रभावित किया था। उनके द्वारा दी गई शिक्षाएं आज भी समाज पर गहरा प्रभाव डाल रही है। उन्हें विशेष रूप से शिकांगो में विश्व धर्म संसद के अंदर दिए गए ऐतिहासिक भाषण के लिए याद किया जाता है, जहां पर उन्होंने भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म की महानता के बारे में पूरी दुनिया में प्रचार किया।
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स्वामी विवेकानंद जी का शुरुआती जीवन और शिक्षा
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था । उनका जन्म एक अमीर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। और और विवेकानंदजी का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और वे एक प्रसिद्द वकील थे, और उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो एक धार्मिक और अपने परिवार के प्रति समर्पित महिला थी। स्वामी विवेकानंद जी के परिवार में धार्मिक और सांस्कृतिक वातावरण था जो कि आगे चल के उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला था।
स्वामी विवेकानंदजी बचपन से तेज बुद्धिमत्ता के थे और वह अध्ययन में भी बहुत चालक थे, और अलग – अलग विषयों में बहुत ज्यादा रुचि रखते थे। उन्होंने अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों के दौरान संस्कृत, हिंदी,अंग्रेजी,गणित और विज्ञान सहित अन्य कई विषयों का अध्ययन किया था। वह बचपन से अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के बारे में सुन रहे थे ,और यही कारण था कि वह हमेशा धर्म और ज्ञान की तलाश में थे।
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स्वामी विवेकानंद जी का रामकृष्ण परमहंस से संपर्क
स्वामी विवेकानंद जी का जीवन वास्तव में रामकृष्ण परमहंस के साथ जुड़ा हुआ था। फिर वह रामकृष्ण के शिष्य बन गए और उनके विचारों और उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने का प्रयास किया।रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को सिखाया कि, भगवान के साथ एकता और अपने जीवन का उद्देश्य ही आत्मज्ञान है। स्वामी विवेकानंद के लिए रामकृष्ण केवल एक गुरु ही नहीं , बल्कि भगवान के समान पूजनीय भी थे।
स्वामी विवेकानंदजी ने अपने गुरु रामकृष्ण जी से शिखा की मनुष्यों को उनकी आत्मा और भगवान के बीच के संबंधों को समझना जाहिए। रामकृष्ण परमहंस के मार्गदर्शन में , स्वामी विवेकानंद ने ध्यान और साधना के गहरे तरीकों को अपनाया। और वह आत्मज्ञान और ज्ञान की और आगे बढ़े, यह स्वामी विवेकानंद के जीवन का महत्वपूर्ण मोड था, जहां उन्हें अपने जीवन के उद्देश्य का एहसास हुआ।
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समाज में परिवर्तन लाना
स्वामी विवेकानंद जी हमेशा समाज की भलाई के लिए कार्य किया। उन्होंने भारतीय समाज में फैला हुआ अंधविश्वास,जातिवाद ,और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। स्वामी विवेकानंदजी का मानना था कि भारतीय समाज को अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को समझने और उसे सकारात्मक दिशा में बदलने की जरूरत थी। उन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए भी काम किया और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था कि, यदि समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी आत्मा को देख ले तो समाज में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं रहेगा। उनका मानना था कि हर एक इंसान ईश्वर का प्रतिबिंब है और हम सभी को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए।
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शिकांगो धर्म संसद में (1893)
स्वामी विवेकानंदजी की प्रसिद्धि 1893 में आयोजित शिकांगो धर्म संसद से बढ़ी।ये महा सभा विश्व में मौजूद धर्मो के प्रतिनिधियों का एक प्रमुख सम्मेलन था,और स्वामी विवेकानंदजी ने इसमें भारत का प्रतिनिधित्व किया था। इस महासभा में स्वामी विवेकानंद जी ने अपने भाषण में भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म की महानता के गुणगान किए थे। उनके द्वारा दिया गया भाषण बहुत प्रसिद्ध हुआ और उन्होंने भारत और भारत की संस्कृति को एक नई पहचान दी।
स्वामी विवेकानंदजी ने शिकांगो में अपने शुरुआती भाषण में कहा था कि , ” आपका भारत,जो विश्व सभ्यता का रत्न था,उसने एक रत्न खो दिया हे,लेकिन वह अभी भी अपनी आंतरिक शक्ति से उभर सकता है।” उन्होंने भारतीय धर्म में सहिष्णुता,धार्मिक सद्भाव और मानवता के महत्व का परिचय दिया। उनके द्वारा दिया गया भाषण आज भी मिल का पत्थर माना जाता है।
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स्वामीविवेकानंदजी का योगदान
स्वामी विवेकानंदजी ने समाज की भलाई और समाज में परिवर्तन लाने के लिए अनेक कदम उठाये। उनका मानना था कि देश की युवा शक्ति देश की सबसे बड़ी ताकत है और युवाओं को अपनी ऊर्जा का उपयोग सही दिशा में करना चाहिए। उनका संदेश था कि,”उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए”।
स्वामी विवेकानंदजी ने भारतीय संस्कृति, योग और वेदांत को महत्व भी समझाया। उनका मानना था कि योग का अभ्यास न केवल स्वास्थ्य के लिए बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए भी आवश्यक है। उनका मानना था कि हम सभी में आपार शक्ति और क्षमता है, जिसे सही मार्गदर्शन और अभ्यास से ही जागृत किया जा सकता है।
उन्होंने ‘ रामकृष्ण मिशन ‘ की स्थापना की ,जिसका उद्देश्य समाज सेवा और शिक्षा को बढ़ावा देना था। इस मिशन के माध्यम से उन्होंने कई स्कूलों, अस्पतालों और आश्रमों की स्थापना की उन्होंने सुनिश्चित किया कि समाज के हर वर्ग को शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं मिले। उनका काम आज भी जारी है और लाखों लोग इसका लाभ ले रहे है।
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स्वामी विवेकानंदजी का अंतिम समय और उनके द्वारा समाज को दी गई विरासत
स्वामी विवेकानंदजी का जीवन बहुत ही प्रेरणादायक था। लेकिन उनका शरीर अधिक समय तक जीवित नहीं रहा। 4 जुलाई 1902 में 39 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंदजी का निधन हो गया। भले ही उनका भौतिक शरीर नष्ट हो गया हो, लेकिन उनके विचार और उनके द्वारा दी गई शिक्षाएं आज भी हमारे बीच जिंदा है। स्वामी विवेकानंदजी भारतीय समाज के एक महान नेता थे , जिनके कार्य और विचार आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते है।
स्वामी विवेकानंद का जीवन संघर्षमय था, जिसमे उन्होंने अपने समय के बड़े – बड़े मुद्दों को सुलझाने का कार्य किया। उनकी शिक्षाएं और संदेश आज भी प्रासंगिक है और भारतीय समाज का हिस्सा है।
स्वामी विवेकानंद द्वारा कही गई 10 महान बाते
- ”उठो ,जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”
- ” आपका जीवन केवल एक अवसर है, इसे पूरी तरह से जीने का प्रयास करे।”
- “जो भी तुम सोच सकते हो, वह तुम कर सकते हो।”
- ” मनुष्य का सबसे बड़ा धन उसका आत्म विश्वास है।”
- ” तुम्हे किसी से डरने की जरूरत नहीं। तुममें अपार शक्ति है।”
- “शरीर एक मंदिर है, और आत्मा उसका देवता है।”
- ” जितनी बड़ी आपकी मेहनत होंगी, उतनी ही बड़ी आपकी सफलता होगी।”
- “आपका कार्य, आपकी पूजा है ।”
- ” अपने आप में विश्वास रखो, और तुम पूरी दुनिया को जीत सकते हो।”
- “मनुष्य को अपनी सोच में स्वतंत्र होना चाहिए।”