- टंटया भील जिन्हे ‘टंटया मामा के नाम से भी जाना जाता है, वो एक आदिवासी नायक के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे । और इतिहास मे टंटया भील को उनके योगदान और गरीबों व शोषितो के लिए किए गए संघर्षों के लिए जाना जाता है ।
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टंटया भील का जन्म ओर शरुआती जीवन
टंटया भील का जन्म 26 जनवरी 1842 मे मद्यप्रदेश मे स्थित खड़वा जिले की पंधाना तहसील के बड़दा गाँव मे हुवा था ,और उनका असली नाम तांतिया भील था ,वे भील जनजाति से संबंधित थे ,जो साहस ,परिश्रम और स्वतंत्रता प्रेम के लिए जानी जानी है। बचपन से ही टंटया भील मे अन्याय और अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने की आदत दिखाई देने लगी थी ।
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आदिवासीयो के अधिकारों का हनन
अंग्रेजों ने आदिवासीयो की भूमि और संसाधनों पर कब्जा कर लिया ,और आदिवासीयो की पारंपरिक जीवन और सांकृति को बुरी तरह प्रभावित किया ,जिसमे आदिवासी समुदायो मे असंतोष बढ़ा ।
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टंटया भील की क्रांतिकारी गतिविधिया
टंटया भीलने ब्रिटिश अधिकारियों ,जमीदारों और साहूकारों के अन्याय के कीलाफ़ हथियार उठाए। वे गरीबों ,किसानों और आदिवासियों की सहायता के लिए धनवानो और अंग्रेजों से धन लूट जरूरतमंदों मे बाँटते थे , इस बजह से उन्हे “भारतीय रॉबिनहुड ” के नाम से भी जाना जाता है।
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टंटया भील की प्रमुख युद्ध रणनीतिया
- गुरिल्ला युद्ध : टंटया भीलने ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ छापामार युद्ध किया । वे छोटे समूहों मे हमला किया और फिर तुरंत भाग जाते थे ,जिसमे ब्रिटिश सेना को उनका पीछा करने मे मुस्किल होती थी।
- आरक्षण के लीए इलाके का लाभ उठाना :टंटया भील अपने आदिवासी इलाके से भली -भाति रूबरू थे । वे एसी पहाड़ी और जंगलों मे रहते थे , जहा ब्रिटिश सेना का पहुचना मुस्किल था । टंटया भील का गुप्त ठंग से हमला करना और फिर जंगल मे गायब हो जाना उन्हे एक जबरजस्त ताकत देती थी।
- आक्रमण के लिए सही समय का चयन :वे दुश्मन के कमजोर बिन्दु ओ को पहचान कर के हमला करते थे ,जेसे की आपूर्ति के किलो या कमजोर किलो पर
- जनता का समर्थन प्राप्त करना :वे स्थानीय आदिवासी समुदायों मे समर्थन प्राप्त करने मे सफल रहे। उनके साथ आदिवासीयो का विश्वास था ,जिसमे उन्हे जानकारी मिलती थी और उनका साथ भी।
- टंटया भील ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कई संघर्ष किए । टंटया भील के 1857 के विद्रोह के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे सक्रिय हुए थे ,और वे आदिवासीयो के आधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे ।
- टंटया भील का संघर्ष अंत मे 1889 मे समाप्त हुवा जब उन्हे ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा पकड़ लिया गया। उन्होंने लंबे समय तक ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ युद्ध किए लेकिन अंत मे उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया ,और 4 दिसम्बर 1889 मे फांसी दे दी गई। उनकी मृत्यु ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे एक गहेरा खालीपन छोड़ दिया, लेकिन उनका संघर्ष और साहस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्रोत बने रहे।
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टंटया भील का जीवन हमे यह सिखाता है , की साहस ,संघर्ष और प्रेरणा से हम किसी भी अत्याचार की खिलाफ खड़े हो सकते है। टंटया भील को एक आदर्श नेता और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक के रूप मे सम्मानित किया जाता है ।